जड़ें बहुत गहरी हैं...
15 मार्च, 1967 का पटना से निकालने वाला सर्चलाइट अखबार पढ़ने को मिल गया। पहली बार राज्य में कॉंग्रेस को हरा कर विपक्ष की सरकार बनी और महामाया बाबू मुख्यमंत्री बने। 1966 में बिहार में अकाल जैसे हालात बन चुके थे और अब 1967 में भी हालत खस्ता थी। उस दिन के अखबार में यह आलेख पढ़ने को मिला। कहा था-
"इसी बीच मुंगेर (वर्तमान शेखपुरा) जिले के बरबीघा प्रखंड के बावन बीघा गाँव से सरकारी अकर्मण्यता का एक नायाब किस्सा सुनने में आया। इस गाँव में एक ट्यूबवेल (नंबर 17) था जो 8 फरवरी से मोटर खराब होने के कारण बन्द था। गाँव वालों ने अधिकारियों को बाबू-भैया कह कर जैसे-तैसे मोटर बदलवायी तो पता लगा कि नयी मोटर का आर्मेचर खराब है। अब आर्मेचर की मरम्मत करवा ली गयी तब बताया गया कि ट्रांसफार्मर गड़बड़ है। तब ग्रामीणों ने किसी तरह से चन्दा करके एक ट्रक का जुगाड़ किया और बिजली विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर जोड़ कर ट्रांसफार्मर अपने गाँव ले आये। इतना करने के बाद उन्हें पता लगा कि यह ट्रांसफार्मर भी काम नहीं करेगा। महीने भर से ऊपर की भाग-दौड़ के बावजूद किसानों की 200 एकड़ भूमि पर लगी रब्बी और मकई की फसल पानी के अभाव में मर गयी। किसानों का खाद, बीज, सिंचाई और मजदूरी का पैसा तो डूबा ही मोटर तथा ट्रांसफार्मर मरम्मत करवाने का दंड ऊपर से लगा। अब उनका गरमा धान भी नहीं होने वाला था।"
और कहाँ लौं कहौं रसखान....